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नौगांव सिविल अस्पताल बना अंधकार का अड्डा – मरीज तड़पते रहे, जिम्मेदारों ने आंखें मूंदी रखीं

नौगांव सिविल अस्पताल बना अंधकार का अड्डा – मरीज तड़पते रहे, जिम्मेदारों ने आंखें मूंदी रखीं।चार घंटे तक अंधेरे में चला इलाज, दो-दो जनरेटर फिर भी नहीं जगी व्यवस्था, मीडिया की दस्तक पर ही लौटी रौशनी।दो दो जनरेटर होने के बाद भी छाया रहा अंधेरा, मीडिया के हस्तक्षेप के बाद मिस्री ने जनरेटर में किया सुधार तब जाकर सात बजे प्रारंभ हो सका जनरेटर।छतरपुर जिले के नौगांव का सिविल अस्पताल शनिवार को सरकारी तंत्र की लापरवाही और व्यवस्था की विफलता का जीवंत उदाहरण बन गया। तेज आंधी-तूफान के चलते दोपहर 3 बजे बिजली गुल हो गई, लेकिन अस्पताल में लगे दो-दो जनरेटर घंटों तक नहीं चल पाए। परिणामस्वरूप पूरा अस्पताल चार घंटे तक अंधेरे में डूबा रहा। मरीज तड़पते रहे, डॉक्टर अंधेरे में मोबाइल की रोशनी से इलाज करते रहे, और नर्सें टॉर्च की मदद से इंजेक्शन लगाती रहीं।शहर के सिविल अस्पताल में शनिवार की शाम भाजपा शासन काल में एकबार फिर दिग्विजय सिंह के शासन काल की याद ताजा हो गई, दरअसल शनिवार को तेज आंधी एवं तूफान चलने के चलते दोपहर तीन बजे से शहर सहित अस्पताल की भी लाइट खराब हो गई थी, चलते चलते अस्पताल में शाम के सात बजे तक अंधेरे में नर्सें इलाज करती पाई गई तो वहीं डॉक्टर भी अंधेरे में मरीज का इलाज और दवाएं लिखते मिले। साथ ही अस्पताल में भर्ती मरीज भी गर्मी एवं पसीना से कराहते नजर आए तो वहीं महिलाएं अपने आंचल से अपने परिजनों को भीषण गर्मी से बचाने के लिए हवा करती नजर आई। सिविल अस्पताल में शाम सात बजे तक न तो बिजली आई, न ही जनरेटर चालू हुआ। जनरेटर के न चलने के पीछे तकनीकी खराबी बताई गई, लेकिन असल वजह जिम्मेदारों की अनदेखी थी। अस्पताल के वार्ड, ऑपरेशन कक्ष और इमरजेंसी रूम अंधेरे में डूबे रहे। मरीजों और उनके परिजनों की हालत ऐसी हो गई मानो उन्हें किसी बंद कोठरी में बंद कर दिया गया हो।

 डॉ. साहब पर्ची लिखते रहे टॉर्च की रोशनी में, नर्स लगाती रहीं इंजेक्शन अस्पताल में ड्यूटी डॉक्टर आदित्य प्रताप सिंह  मोबाइल टॉर्च जलाकर मरीजों को देख रहे थे। एक मरीज की जांच के दौरान डॉक्टर ने कहा

"बिजली नहीं है, मजबूरी में ऐसे ही देखना पड़ रहा है। मरीजों को छोड़ नहीं सकते, लेकिन रोशनी नहीं होने से जोखिम बढ़ जाता है।"

मरीजों और परिजनों की आपबीती

अस्पताल में अपने पति का इलाज करा रही ऊषा पाल ने बताया कि "मेरे पति की तबियत खराब है, इलाज चल रहा है, लेकिन अस्पताल में अंधेरा एवं गर्मी छाई है।नर्सें मोबाइल से काम कर रहीं थीं। अगर उस दौरान कोई इमरजेंसी हो जाती तो क्या होता?"।  रामस्वरूप कुशवाहा ने बताया कि तीन दिन से भर्ती हूं, लेकिन आज जैसी परेशानी पहले कभी नहीं देखी। टॉर्च में डॉक्टर ब्लड प्रेशर देख रहे थे। गर्मी और उमस से परेशान हैं। महिला कविता अहिरवार ने बताया कि अपने पिता का इलाज कराने अस्पताल आई हूं लेकिन अस्पताल में दो दो जनरेटर बंद पड़े हैं।

जिम्मेदार कौन? – दो जनरेटर फिर भी चार घंटे का अंधेरा

यह कोई पहला मौका नहीं जब जनरेटर बंद मिले हों। पहले भी कई बार आपातकालीन परिस्थितियों में जनरेटरों की नाकामी सामने आई है, लेकिन कोई ठोस व्यवस्था नहीं की गई। अस्पताल में शाम 4 बजे से छाए अंधेरे एवं गर्मी से परेशानी के बाद भी अस्पताल में लाइट शुरू करने को लेकर कोई प्रबंध नहीं किया, जिसके चलते तीन घंटे से अस्पताल में भर्ती मरीज इलाज के दौरान गर्मी से परेशान दिखे तो वहीं नर्सें अंधेरे में मोबाइल टॉर्च को रोशनी से इंजेक्शन, पट्टी आदि इलाज करती रहीं तो वहीं डॉक्टर भी अंधेरे में पर्चे पर दवाई लिखते मिले। ऐसे में सवाल यह है कि जनरेटरों की नियमित जांच क्यों नहीं होती? इमरजेंसी सेवाओं में बिजली बैकअप सुनिश्चित क्यों नहीं है? टेक्नीशियन को कॉल करने के बावजूद 4 घंटे का इंतजार क्यों हुआ? क्या यह सीधे तौर पर जान से खिलवाड़ नहीं है? 

मीडिया आया तो मिस्त्री भी आया!

शाम करीब सवा 7 बजे जब भास्कर संवाददाता अस्पताल पहुंचा और अधिकारियों से सवाल पूछे जाने लगे, तभी मिस्त्री सक्रिय हुआ। इसके बाद मिस्री ने जनरेटर को बैटरी से स्टार्ट किया तो जनरेटर में डीजल नहीं था, जिसके बाद कर्मचारियों ने डीजल मंगवाया और तब जाकर अस्पताल में विद्युत व्यवस्था दुरुस्त हो सकी। करीब सवा 7 बजे जनरेटर चालू किया गया। यह साबित करता है कि प्रशासन केवल कैमरे और सवालों से ही जागता है, आमजन की पीड़ा से नहीं। 

जनता का फूटा गुस्सा

शहरवासी सनातन रावत ने कहा  कि"मोहन सरकार में भी अब अस्पतालों की हालत दिग्विजय युग जैसी हो गई है। दो-दो जनरेटर और फिर भी अंधेरा? यह घोर लापरवाही है।" "यह सिर्फ बिजली की बात नहीं है, ये स्वास्थ्य के अधिकार का उल्लंघन है। हम इस पर प्रदर्शन करेंगे और जिम्मेदारों के खिलाफ कार्रवाई की मांग करेंगे।" नौगांव का सिविल अस्पताल न केवल तकनीकी, बल्कि प्रशासनिक असफलता का केंद्र बनता जा रहा है। शनिवार की घटना ने यह सिद्ध कर दिया कि व्यवस्थाएं कागज़ों में हैं, जमीन पर सिर्फ अंधेरा और लापरवाही है। यदि अब भी संबंधित अधिकारी नहीं जागे, तो अगली बार यह अंधेरा किसी मासूम की जान भी ले सकता है।

इनका कहना है..

तेज आंधी एवं तूफान के कारण विद्युत व्यवस्था खराब हो गई थी, तकनीकी समस्या के कारण जनरेटर भी समय पर चालू नहीं हो सका। मिस्त्री के आने के बाद सुधार कार्य कराया गया ,जिसके बाद लगभग सवा तीन घंटे बाद जनरेटर चालू हो सका।

- आदित्य प्रताप सिंह,

मेडिकल ऑफिसर, 

ड्यूटी डॉक्टर सिविल अस्पताल नौगांव

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