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गांव-गांव में खुले "शराब मंडी" – सिस्टम की सरपरस्ती में फल फूल रहा है नौगांव का शराब माफिया

 

नौगांव, छतरपुर |जिले में जैसे ही नया वित्तीय सत्र शुरू हुआ, वैसे ही शराब माफिया ने भी नए तेवर के साथ अपनी गतिविधियों को तेज कर दिया है। नौगांव क्षेत्र से शनिवार सुबह एक वीडियो वायरल हुआ जिसने पूरे सिस्टम की चूलें हिला दीं। दो युवक मोटरसाइकिल पर सात पेटी अंग्रेजी शराब लेकर गांव की ओर बेधड़क निकलते दिखे – न कोई डर, न कोई रोक।

वीडियो ने खोले राज – "कंपनी के आदमी" हैं, कमीशन पर सप्लाई करते हैं
मीडिया कर्मियों ने जब इन युवकों से सवाल किए तो जवाब मिला – "हम कंपनी के आदमी हैं, कमीशन पर गांव में शराब पहुंचाते हैं।" यह बयान जितना सहज था, उतना ही गंभीर। ये लोग खुलेआम स्वीकार कर रहे थे कि वे ठेके से शराब उठाकर गांव-गांव तक पहुंचा रहे हैं, मानो यह कोई अधिकृत सेवा हो।
ठेका वैध, पर नेटवर्क अवैध – हर गांव में चल रही गुप्त दुकानें
सरकार भले ही कहे कि शराब दुकानें तय दायरे में ही संचालित होती हैं, पर ज़मीनी हकीकत बिल्कुल उलट है। हर गांव में एजेंटों के जरिए शराब की गुप्त दुकानें चलाई जा रही हैं। सुबह मोटरसाइकिल, दोपहर में जीप और शाम होते ही धंधा अपने चरम पर पहुंच जाता है।
महिलाएं भी कंधे से कंधा मिलाकर 'व्यवसाय' में शामिल
यह कारोबार इतना मजबूत हो चुका है कि अब गांव की महिलाएं भी इसमें सक्रिय भूमिका निभा रही हैं। हर पेटी पर 500 से 700 रुपये कमीशन मिलता है, और दिन भर में 3 से 4 पेटियां बेचकर लोग घर बैठे 2000 रुपये तक कमा रहे हैं। गरीबी और बेरोजगारी के बीच यह ‘सुनहरा धंधा’ बन चुका है।
तस्करी का विस्तार – अच्चट से लेकर गरौली तक, हर चौकी में पहुंच
यह नेटवर्क सिर्फ अच्चट गांव तक सीमित नहीं है। लुगासी, गरौली, अलीपुर थाना, और पूरे नौगांव क्षेत्र के गांव-गांव में शराब की आपूर्ति हो रही है। यह एक सुसंगठित सिंडिकेट है, जिसमें हर कड़ी जुड़ी हुई है – एजेंट, ट्रांसपोर्टर, ठेकेदार और ऊपर तक पहुंच रखने वाले अधिकारी।
पानी नहीं, पर शराब हर गांव में मौजूद
गर्मी चरम पर है। कई गांव ऐसे हैं जहाँ पीने के पानी के लिए लोग तरस रहे हैं। लेकिन शराब? वह हर कोने में, हर गली में, हर चौपाल पर उपलब्ध है। प्रशासन की प्राथमिकता स्पष्ट है – 'मुनाफा', न कि 'जनसेवा'।
थाने से लेकर ठेके तक – सब कुछ "मैनेज" है
सवाल उठता है कि इतना बड़ा नेटवर्क बिना पुलिस और आबकारी विभाग की मिलीभगत के कैसे फल-फूल सकता है? जवाब है – नहीं फल सकता। हर महीने "नजराना" ऊपर तक पहुंचता है, और बदले में अवैध शराब धड़ल्ले से बिकती है। कभी-कभी दिखावे के लिए एक-दो एजेंटों को पकड़ लिया जाता है, प्रेस रिलीज़ जारी होती है, और खुद को कर्मठ साबित करने की कोशिश की जाती है।
आबकारी विभाग की चुप्पी – समझ से परे नहीं
हर बार की तरह आबकारी महकमा इस बार भी "सामूहिक नींद" में है। लेकिन जैसे ही किसी ठेकेदार का 'महीना' लेट होता है, फौरन फोन घनघनाते हैं। विभाग को सिर्फ अपनी वसूली से मतलब है, क्षेत्र की स्थिति से नहीं।
अब सवाल यह है:
क्या यह सिलसिला यूं ही चलता रहेगा? क्या गांव-गांव में शराब के जाल में युवा और महिलाएं फंसते रहेंगे? और क्या प्रशासन वाकई सो रहा है, या सब कुछ उसकी नज़र के सामने "सिस्टम" की छांव में पनप रहा है?

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