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लाखों की लागत से बने पंचायत भवनों में लटके ताले

नौगांव। जनपद क्षेत्र की ग्राम पंचायतों में जिम्मेदार आधिकारियों की अनदेखी या मिलीभगत का आलम इस कदर है कि अधिकांस सरकारी कार्यालयों पर ताले लटके हुए हैं। ग्राम पंचायतों में पंचायत भवन कार्यालय सचिव और रोजगार सहायक की अपनी मर्जी से खुलने एवम् बंद होने के कारण ग्रामीण सरकारी योजनाओं का लाभ पाने और अपनी समस्याओं को लेकर दर दर भटक रहें है। गांव विकास और जनकल्याणकारी योजनाओं का संचालन करने वाले पंचायत कार्यालय वीरान पड़े ताले में कैद रहते है। इन पंचायत कार्यालयों में न सचिव दिखते हैं न रोजगार सहायक? मानो जैसे जिला से लेकर जनपद पंचायत सीईओ का इन्हें खुला संरक्षण प्राप्त हो। जब राजएक्सप्रेस ने ग्राम पंचायतों के खुलने की हकीक़त जाननी चाही तो अधिकतर पंचायत कार्यालयों में ताले लटके मिले। ग्रामीणों का कहना है कई बार गांव में आए आधिकारियों से शिकायत की गई। इसके वावजूद भी हालात जस के तस बने हुए है।
अधिकांश पंचायत कार्यालयों में लटका मिला ताला
बीते दिन जब राज एक्सप्रेस की टीम ने जनपद क्षेत्र के समीपी लगी ग्राम पंचायत नयागांव ,धर्मपुरा, बरट सडेरी, से लेकर दूरदराज की ग्राम पंचायत अमा, परेथा, मवैया, सड़सेर, काकुनपुरा, नेगुवा, झिंझन, दोनी सहित अनेक ग्राम पंचायतों का जायजा लिया तो हर जगह पंचायत कार्यालयों में ताले जड़े मिले। हैरत की बात तो यह है की जब पंचायत सचिव और रोजगार सहायकों से बात की गई तो किसी ने भी पंचायत बंद होने का स्पष्ट जवाब नही दिया किसी न मीटिंग तो किसी ने जिला पंचायत कार्यलय में जाने की बात कर अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ लिया।
सचिव और रोजगार सहायक की मनमानी
ग्रामीणों का कहना है की पंचायत सचिव और रोजगार सहायक अपनी मर्जी के मालिक बन बैठे हैं। हफ्तों तक कार्यालय नहीं खोलना, मोबाइल पर बात नही करना और काम के नाम पर टालमटोल करना अब आम बात हो गई है। क्योंकि कभी भी कोई ज़िम्मेदार आधिकारी इन पंचायत कार्यालयों की सुध नहीं लेता न ही निरिक्षण किया जाता जिसके चलते सरपंच सचिव और रोजगार सहायक अपनी मनमर्जी के मालिक बने बैठे है। ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि बिना पैसे के सरकारी योजनाओं का लाभ भी नही सीधे तौर पर नहीं मिलता।
जिम्मेदार अधिकारियों का ढीला रवैया
सबसे हैरानी की बात ये है कि इस अनियमितता की जानकारी ग्रामीणों ने कई बार जनपद और जिला पंचायत अधिकारियों को दी गई। लेकिन किसी ने अब तक सुध नहीं ली। जिम्मेदार अधिकारी सिर्फ कागजों पर सब कुछ सामान्य बता रहे हैं। जबकि ज़मीनी हकीकत इसके ठीक उलट कुछ और ही बयां कर रही है।
उपलब्धि के दावे, हकीकत में सूनापन
सरकार विकास कार्यों की बात कर रही है, लेकिन पंचायतों में कामकाज का ये हाल है। ग्राम पंचायतों में अनियमितता, मस्टर पर फर्जी हाजिरी और धुंधले बिल जैसे घोटाले की चर्चाएं भी ज़ोरों पर हैं, लेकिन कोई देखने-सुनने वाला नहीं। अब देखना ये है कि कब प्रशासन की नींद टूटेगी और कब सरकारी कार्यालयों में जड़े ताले हर रोज खुलेगा या नही यह देखने बाली बात होगी।

इनका कहना

सप्ताह में वैसे दो दिन की छुट्टी रहती है। अगर पंचायत कार्यालय नही खुल रहे है तो जांच कराकर सख्त कार्यवाही की जाएगी।
तपस्या सिंह परिहार, सीईओ, जिला पंचायत छतरपुर

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