हरपालपुर।
सरकार भले ही किसानों की भलाई के लिए योजनाओं के दावे कर रही हो, लेकिन
जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां करती है। हरपालपुर कृषि उपज मंडी में किसानों
के लिए घोषित 5 रुपये में भोजन योजना वर्षों से ठप पड़ी है। साथ ही पीने के
पानी, विश्रामगृह और उचित तौल की सुविधाएं भी नदारद हैं, जिससे दूर-दराज
से आए किसानों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है।
मंडी परिसर में स्थित कैंटीन वर्षों से बंद पड़ी है। मंडी सचिव संतोष नागर ने बताया कि कई बार कैंटीन संचालन के लिए निविदा जारी की गई, लेकिन किसी भी ठेकेदार ने रुचि नहीं दिखाई। इससे यहां मिलने वाली 5 रुपये की भोजन योजना बंद हो गई है। किसानों को मंडी में भोजन के लिए बाहर भटकना पड़ता है। मंडी में पीने के पानी की व्यवस्था भी नाममात्र की है। पूरे परिसर में सिर्फ एक हैंडपंप है, जो पानी कम और हवा ज्यादा देता है। मंडी सचिव का कहना है कि पानी के लिए एक कर्मचारी तैनात किया गया है, और मटके रखवाए गए हैं ताकि किसानों को ठंडा पानी मिल सके। मंडी में मौजूद किसान विश्रामगृह भी बदहाली की तस्वीर पेश कर रहा है। देखरेख के अभाव में दीवारों का प्लास्टर उखड़ चुका है, खिड़कियां और रोशनदान टूटे पड़े हैं। ऐसे में यदि किसी किसान को रुकना भी पड़े, तो वह संभव नहीं है। मंडी में उपज की डाक बोली के दौरान भी अनियमितताएं देखी जा रही हैं। व्यापारियों द्वारा फसल को जांचने के बहाने नीचे फेंक दिया जाता है। इसके बाद महिलाएं झाड़ू और बोरियों के साथ इन फसलों को इकट्ठा कर ले जाती हैं। इस पर कई बार किसानों की उनसे बहस भी हो चुकी है। हरपालपुर मंडी में मध्यप्रदेश के अलावा उत्तर प्रदेश के महोबा और झांसी जिलों से भी किसान बड़ी संख्या में फसल लेकर पहुंचते हैं। हर रबी सीजन में लाखों क्विंटल गेहूं की खरीद होती है, लेकिन अव्यवस्थाओं के कारण किसानों की मुश्किलें कम होने की बजाय बढ़ती जा रही हैं।
मंडी सचिव बोले - प्रयास जारी हैं
मंडी सचिव संतोष नागर का कहना है कि किसानों के लिए ठंडा पानी उपलब्ध कराने के प्रयास किए जा रहे हैं। किसानों को पानी पिलाने के लिए कर्मचारी तैनात है। मटके रखवाए गए हैं। कैंटीन के लिए पुनः ठेका देने की कोशिशें भी जारी हैं। व्यक्तिगत रूप से ठेकेदारों से बात की जा रही है, ताकि कैंटीन संचालन दोबारा शुरू हो सके।
मंडी परिसर में स्थित कैंटीन वर्षों से बंद पड़ी है। मंडी सचिव संतोष नागर ने बताया कि कई बार कैंटीन संचालन के लिए निविदा जारी की गई, लेकिन किसी भी ठेकेदार ने रुचि नहीं दिखाई। इससे यहां मिलने वाली 5 रुपये की भोजन योजना बंद हो गई है। किसानों को मंडी में भोजन के लिए बाहर भटकना पड़ता है। मंडी में पीने के पानी की व्यवस्था भी नाममात्र की है। पूरे परिसर में सिर्फ एक हैंडपंप है, जो पानी कम और हवा ज्यादा देता है। मंडी सचिव का कहना है कि पानी के लिए एक कर्मचारी तैनात किया गया है, और मटके रखवाए गए हैं ताकि किसानों को ठंडा पानी मिल सके। मंडी में मौजूद किसान विश्रामगृह भी बदहाली की तस्वीर पेश कर रहा है। देखरेख के अभाव में दीवारों का प्लास्टर उखड़ चुका है, खिड़कियां और रोशनदान टूटे पड़े हैं। ऐसे में यदि किसी किसान को रुकना भी पड़े, तो वह संभव नहीं है। मंडी में उपज की डाक बोली के दौरान भी अनियमितताएं देखी जा रही हैं। व्यापारियों द्वारा फसल को जांचने के बहाने नीचे फेंक दिया जाता है। इसके बाद महिलाएं झाड़ू और बोरियों के साथ इन फसलों को इकट्ठा कर ले जाती हैं। इस पर कई बार किसानों की उनसे बहस भी हो चुकी है। हरपालपुर मंडी में मध्यप्रदेश के अलावा उत्तर प्रदेश के महोबा और झांसी जिलों से भी किसान बड़ी संख्या में फसल लेकर पहुंचते हैं। हर रबी सीजन में लाखों क्विंटल गेहूं की खरीद होती है, लेकिन अव्यवस्थाओं के कारण किसानों की मुश्किलें कम होने की बजाय बढ़ती जा रही हैं।
मंडी सचिव बोले - प्रयास जारी हैं
मंडी सचिव संतोष नागर का कहना है कि किसानों के लिए ठंडा पानी उपलब्ध कराने के प्रयास किए जा रहे हैं। किसानों को पानी पिलाने के लिए कर्मचारी तैनात है। मटके रखवाए गए हैं। कैंटीन के लिए पुनः ठेका देने की कोशिशें भी जारी हैं। व्यक्तिगत रूप से ठेकेदारों से बात की जा रही है, ताकि कैंटीन संचालन दोबारा शुरू हो सके।