रशासनिक तंत्र की नाकामी और फर्म संचालकों की साजिश उजागर बैंक की मेहरबानी, प्रशासन की चुप्पी और एक निवेशक की लूट
2/17/2025 07:37:00 pm
नौगांव। जिलके में एक ऐसा प्रकरण उजागर हुआ है, जिसने न्याय प्रणाली पर गंभीर प्रश्नचिह्न खड़े कर दिए हैं। साई कृपा ग्रेनाइट नाम से दो फर्मों का निर्माण, बैंक की उदारता से बिना गारंटी के लोन और साजिश के तहत लोगों से करोड़ों की ठगी—यह कहानी किसी वित्तीय घोटाले से कम नहीं। न्याय की आस में भटकते एक निवेशक ने जब अपने अधिकारों की मांग की तो उसे धमकियां देकर खामोश करने का प्रयास किया गया। प्रशासन ने एसडीएम के आदेश को कागज का टुकड़ा समझकर तिरस्कृत कर दिया, और पुलिस मूकदर्शक बनी रही।
धन हड़पने से लेकर धमकाने तक का खेल
शिकायतकर्ता के अनुसार, उसे भरोसे में लेकर करोड़ों की राशि निवेश करवाई गई, लेकिन चार वर्षों से एक पैसा भी लाभांश के रूप में प्रदान नहीं किया गया। जब उसने जवाबदेही मांगी तो उसे धमकाकर भगा दिया गया। जब वह अपने न्याय के अधिकारों को खोजने क्रेशर प्लांट पहुंचा, तो वहां पर अविनाश श्रीवास्तव, जेसीबी ड्राइवर दुली कुशवाहा, पोकलिन मशीन ड्राइवर विकास, और प्लांट ऑपरेटर रामसहाय राजपूत सहित अन्य लोग मौजूद थे। उसने देखा कि प्लांट से महत्वपूर्ण मशीनें, विशेष रूप से जेनरेटर गायब थी। जब उसने इसका कारण पूछा, तो उसे ठंडे स्वर में उत्तर मिला—बेंच दिया गया। जब उसने इस पर आपत्ति जताई और अपने हक की मांग की तो उसे अपमानजनक शब्दों और जान से मारने की धमकियों के साथ भगा दिया गया। यही नहीं, जब उसने पुलिस की मदद ली, तो जवाब आया—पहले भी गए थे, क्या कर लिया? यह केवल आर्थिक शोषण का मामला नहीं, बल्कि एक संगठित साजिश है, जहां प्रशासनिक तंत्र की कमजोरी ने अपराधियों को निरंकुश बना दिया है।
एसडीएम का आदेश बना कागज का टुकड़ा
न्याय व्यवस्था की गरिमा तब तार-तार हो गई, जब स्ष्ठरू द्वारा लगाए गए स्टे ऑर्डर को क्रेशर संचालकों ने खुलेआम ठुकरा दिया। प्रशासनिक आदेशों की अवहेलना करते हुए ताला तोडक़र गिट्टी उठाई गई। पुलिस ने इस अवैध कृत्य पर आंख मूंद ली और कार्रवाई से इनकार कर दिया। अधिकारियों से बड़े अधिकारी बनने की होड़ में पुलिस, अपराधियों की ढाल बन गई।
न्याय के लिए संघर्ष
जब क्रेशर का लोन एनएपी घोषित हुआ तो अविनाश खरे ने पीडि़त से वादा किया कि यदि वह किश्तें भरेगा, तो उसका निवेश सुरक्षित रहेगा। न्याय की उम्मीद में पीडि़त ने 15-15 लाख की बैंक किश्तें अपने खाते से अदा कीं। 60 लाख से अधिक का निवेश किया, जिसमें 35 लाख चेक से और बाकी नगद था। मशीनरी और इंफ्रास्ट्रक्चर में भारी निवेश करने के बावजूद, उसका कोई हक स्वीकार नहीं किया गया। जब पीडि़़त अपने अधिकारों की मांग कर रहा है, तो उसे धमकाया जा रहा है और न्याय प्रणाली ने उससे मुंह मोड़ लिया है।
फर्जी खाते और दोहरी धोखाधड़ी
शिकायत में यह भी उल्लेख किया गया है कि यूनियन बैंक ऑफ इंडिया में फर्जी खाता खोलकर राशि निकाली गई। संजीव रावत से 35 लाख लेकर एग्रीमेंट किया, फिर किसी और से दूसरा एग्रीमेंट कर लिया। तीन साल से क्रेशर का संचालन करके लाखों की कमाई करने के बावजूद, 22-22 प्रतिशत लाभांश नहीं दिया गया। मशीनरी का किराया भी नहीं चुकाया गया। जिससे कुल 54.64 लाख का नुकसान हुआ।
न्याय का पतन या अपराधियों का संरक्षण
सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि पुलिस और प्रशासन इस साजिश में मौन बने हुए हैं। एसडीएम के आदेश को कूड़ेदान में फेंका गया। पुलिस शिकायत को नजर अंदाज कर रही है। लोकतंत्र में प्रशासनिक व्यवस्था अपराधियों के आगे बौनी साबित हो रही है।
कब सुनी जाएगी पीडि़त की आवाज़?
पीडि़त ने प्रशासन से अपील की है कि अविनाश श्रीवास्तव, अविनाश खरे और रवि अग्रवाल सहित अन्य दोषियों पर कठोर कानूनी कार्रवाई की जाए। अवैध रूप से बेचे गए जेनरेटर को जब्त किया जाए और पीड़ित को उसका हिस्सा दिलाया जाए। 3. 54.64 लाख की राशि पीडि़त को लौटाई जाए। पीड़ित और उसके कर्मचारियों को सुरक्षा प्रदान की जाए, ताकि वे भयमुक्त होकर अपने अधिकारों की मांग कर सकें। क्रेशर संचालन का अधिकार दिया जाए, जैसा कि पूर्व में वादा किया गया था।
मनुहास रेस्टोरेंट में गूंजा न्याय का स्वर
इस प्रकरण को लेकर नौगांव के मनुहास रेस्टोरेंट में एक प्रेस वार्ता आयोजित की गई, जिसमें संजय अग्निहोत्री, नीलू रावत और जय अग्रवाल सहित कई सामाजिक कार्यकर्ताओं और व्यापारियों ने हिस्सा लिया। उन्होंने पुलिस की निष्क्रियता और प्रशासन की लापरवाही पर तीखे सवाल खड़े किए। फर्जीवाड़े और प्रशासनिक तंत्र की नाकामी की निष्पक्ष जांच की मांग की गई।
क्या मिलेगा न्याय या दब जाएगा मामला?
अब सबसे बड़ा सवाल यही है कि क्या प्रशासन अपराधियों के खिलाफ सख्त कार्रवाई करेगा, या यह मामला भी फाइलों में दबकर रह जाएगा? क्या न्याय की आस में भटकता यह पीड़ित कभी अपने अधिकार प्राप्त कर सकेगा, या फिर लोकतंत्र की न्याय प्रणाली धनबल और साजिश के आगे घुटने टेक देगी?