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वृक्षारोपण या पौधारोपण और उसमें भारी भ्रष्टाचार?

 


@ श्रवण गौरव 

भोपाल।हमारे देश के प्रधान ने कहा कि " एक पेड़ मां के नाम पर।" और फैशन चल पड़ा वृक्षारोपण का, पौधारोपण का नहीं। जब वृक्ष ही रोपे जा रहे हैं, तो स्वाभाविक सी बात है कि उनकी सुरक्षा की कतई चिंता नहीं होगी। 

इसके पहले भी पुरखों, पिता, प्रकृति, पर्यावरण और दिवंगत आत्मिक जनों के नाम पर पेड़ रोपे जाते रहे हैं, पौधे नहीं। हमारे देश और हर प्रदेश की सरकारें एक लम्बे अरसे से वृक्षारोपण को प्रोत्साहित करती रही हैं और सरकारी मद से पेड़ लगाती रही हैं। लेकिन प्राकृतिक असंतुलन बढ़ता ही रहा और पर्यावरण चौपट होता रहा। जिसके दुष्परिणाम हम सूखा, बाढ़ और भूस्खलन के रूप में हम लगातार भोगते आ रहे हैं। 

देश के हर प्रदेश में वृक्षारोपण के नाम पर सरकारी मद से आज तक भारी भ्रष्टाचार हुआ है। यदि कहा जाए कि यह भ्रष्टाचार सैकड़ों करोड़ो रुपए से अधिक का होगा, तो अतिशयोक्ति नहीं होगा। देश के किसी भी कोने पर शासकीय मद से हुए वृक्षारोपण की जांच की जाए, तो सारी कलई खुल जायेगी। यदि कहा जाए कि हमारे वनों की तबाही में सर्वाधिक हाथ वन विभाग का ही है, तो गलत नहीं होगा। वन विभाग द्वारा अब तक कराये गये वृक्षारोपण की गंभीर जांच सर्वाधिक भ्रष्टाचार की परतें खोल डालेंगी। 

आज के देश के ग्रामीण विकास और कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने मध्यप्रदेश का मुख्यमंत्री रहते नर्मदा किनारे वृक्षारोपण का अभियान चलाया था। जिस पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप लगे थे।सच भी है कि शायद! ही उन रोपित पौधों में से कुछ भी वृक्ष बन पाये हों और जीवित बचे हों। 

हमारे देश में जंगलों का जो अस्तित्व बचा है और जो कुछ आबोहवा सही है। उसमें स्वप्रेरित होकर पौधारोपण करने वाले समाजसेवियों बहुत बड़ा हाथ हैं। बहुत से ऐसे किसान और मजदूर हैं, जो खुद के संसाधन से हर साल पौधारोपण करते हैं और उनकी सुरक्षा के दायित्व का भी बखूबी निर्वाह करते हैं। बहुत से समाजसेवी पौधारोपण के लिए जन जागरूकता अभियान चलाकर लोगों को प्रोत्साहित करते रहते हैं। जैसे हमारे छतरपुर के #डा.राजेश अग्रवाल खुद के संसाधन से पौधारोपण हेतु हजारों पौधे निःशुल्क वितरित करते हैं। ऐसे लोग बहुत-बहुत बधाई के पात्र हैं। 

इसमें कोई दो राय नहीं कि शासकीय मद से वृक्षारोपण करने वाला तंत्र भ्रष्टाचार से बाज नहीं आता और उनकी सुरक्षा के प्रति गंभीर भी नहीं होता है। बस पेड़ लगाते फोटो खिंचवा कर आंकड़ो की बाजीगरी दिखाना ही उसका कौशल होता है। जो तंत्र आजतक वृक्षारोपण करता आया हो, पौधारोपण नहीं। उसकी पर्यावरण के प्रति संवेदना समझी जा सकती है। वह आज तक यह ही नहीं समझ पाये कि उनको पौध रोपनी है अथवा वृक्ष?खैर, पौध रोपो अथवा वृक्ष, रोपो तो सही और जो भी रोपो उसकी सुरक्षा और पानी-खाद के इंतजाम को भी प्राथमिकता देना अत्यंत जरूरी है। 

पौधारोपण या वृक्षारोपण के नाम पर भ्रष्टाचार करने वाला तंत्र हमारी प्रकृति और पर्यावरण का कातिल है, जिसे हमें हतोत्साहित और दण्डित करना होगा। अच्छा होगा कि सरकारी मद से अब तक कराये गये वृक्षारोपण की पूरे देश में सघन और सच्ची जांच कराई जाये और दोषियों को कड़ा दण्ड दिया जाए।

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