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खेलने कूदने की उम्र में नाबालिक बच्चे कर रहे दुकानों में काम बाल श्रम कानून की उड़ रही धज्जियां


गरीबी और पेट की आग बुझाने के लिए मासूमों के ऊपर जबरन लादा जा रहा जिम्मेदारियों का बोझ..... प्रशासन मौन...... आखिरकार इन दुकानदारों पर कब होगी कार्यवाही....

नौगांव। वैसे तो हमारे देश में बालश्रम अपराध माना गया है और बच्चों से मजदूरी कराने वालों को सख्त सजा का प्रावधान भी है लेकिन जमीनी हकीकत कुछ और ही बयां कर रही है जो हमारी सरकारों के साथ ही संवेदनशील व सभ्य समाज का दम्भ भरने वालों के मुंह पर जोरदार तमाचा शाबित हो रहा है। जी हां हम बात कर रहे हैं मेन मार्केट नौगांव की जहां दुकानों में 11 साल से लेकर 14 साल के बच्चे काम करते हुए आसानी से देखे जा रहे हैं जो आज के इस भौतिकवादी और महंगाई से त्रस्त जीवन के भंवर में बचपन से ही उलझ जाते हैं। शायद यही वजह है कि इन बच्चों के निश्छल और किलकारियों से भरे बचपन की हंसी छिन गई है और मासूमियत कहीं खो गई है। तो वहीं बाजारों में सजी दुकानों में छोटे-छोटे बच्चे  बैठकर दुकान चलाते दिख जाना आम बात है और अधिकारी वर्ग वहीं से सामान लेकर अपने अगले काम के लिए चल देता है। वह न तो बच्चों पर ध्यान देता। और ना ही बच्चों की मासूमियत पर ध्यान दिया जाता है ,यह सिलसिला शहर में रोजाना देखा जा रहा है। वहीं इससे मिलती जुलती तस्वीर एक और है जहां शहर के बड़े बड़े रसूखदार अपने प्रतिष्ठानों में नाम मात्र की पगार देकर नाबालिग बच्चों को काम पर रखकर उनका बचपना छीन रहे हैं। शहर के सैकड़ों प्रतिष्ठानों और दुकानों में नाबालिग बच्चे मजदूरी कर रहे हैं।

पढ़ने की उम्र में बोझ ढो रहे बच्चे-

जरा सोचिए कौन से मां -बाप चाहते होंगे कि उनका बच्चा स्कूल जाने की वजाय मजदूरी करे। लेकिन गरीबी और महंगाई के चलते जिम्मेदारियां व अपेक्षाओं के बोझ तले दबकर ये मासूम अपना जीवन नहीं जी पा रहे हैं। गरीबी के शिकार बच्चे अपने परिवार का भरण पोषण करने के लिए होटलों, दुकानों के अलावा अन्य काम करने में ही अपना हंसता खेलता बचपन गवां रहे है। वहीं नए शिक्षा सत्र की शुरुआत होते ही बच्चों को स्कूल भेजने के उद्देश्य से जगह-जगह जागरूकता रैलियां निकाली जाती हैं साथ ही स्कूलों में बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य पर करोड़ों रुपए खर्च हो रहे हैं। सरकारी विद्यालयों में पढऩे वाले बच्चों को मुफ्त किताबें, ड्रेस, स्कूल बैग और मध्यांह भोजन की व्यवस्था भी की गई है। लेकिन यहां भी वास्तविकता कुछ और ही है। बच्चों को दी जाने वाली किताबों, कपड़ों से लेकर मध्यांह भोजन तक में चल रही कमीशनखोरी और धांधली किसी से छुपी नहीं हैं। सवाल तो यह है कि पेन कागज पकडऩे वाले हाथों और कंधों में जिम्मेदारियों का भारी भरकम बोझ मासूमों को उनका बचपन कब मिलेगा या फिर ऐसी ही होगी देश के भविष्य की तस्वीर।

अधिक पैसों का लालच देकर नाबालिक बच्चों से करवाया जाता है काम नौगांव के मेन मार्केट में कपड़े की कई दुकानों पर बच्चे कर रहे काम।प्रशासनिक अधिकारी भी उन दुकानों पर सामान खरीदने के लिए जाते हैं नाबालिक बच्चों को काम करते हुए भी देखते हैं फिर भी उन अधिकारियों की हिम्मत नहीं पड़ती कि आखिरकार नाबालिक बच्चे दुकानों पर कैसे काम कर रहे है।
नौगांव नगर के मेन मार्केट में नाबालिक बच्चों को काम करते हुए दुकानों पर आसानी से देखा जा सकता है प्रशासनिक अधिकारी फिर भी चुप्पी साधे हुए बैठे हैं

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