बुंदेलखंड में ऐतिहासिक धरोहर बिखरी पढ़ी है। अफ़सोस कि इन्हे सवारने-सजोने वाला कोई नहीं है। छतरपुर जिले में तो 9-10 वी शताब्दी के कई ऐसे मंदिर है जो जर्जर हालात में है। जिनकी खंडहर उनके अतीत को याद दिलाते है कि इनकी इमारते भव्य होंगी। बुंदेलखंड के संस्थापक राजा छत्रसाल की कर्म भूमि महेवा क्षेत्र में बजरंगबली के करीब 51 मंदिर है। यहाँ अन्य भगवानो के मंदिर भी है। इसी तरह नौगांव अनुभाग का गांव अचट्ट जहाँ एक मंदिर में स्थापित विष्णु प्रतिमा देश की पहली भव्य मूर्ति होंगी। चंदला क्षेत्र में खजुराहो मंदिरो की तर्ज पर व्यास बदौरा के मंदिरो की श्रखला सहित कई ऐसे मंदिर है जो गुमनाम है। छतरपुर जिला मुख्यालय से महज दस किमी दूर ग्राम भगवन्तपुरा में 8-9 वी शताब्दी का पांच शिखर वाले भगवान शिव के मंदिर इन्ही लावारिस धरोहर में से एक है जिन्हे इंतज़ार है अपने उद्धार का। विश्व धरोहर खजुराहो की चमक के सामने छतरपुर जिले का अन्य इतिहास और उससे जुडी ऐतिहासिक ईमारते अँधेरे में गुमनाम हो चुकी है। खजुराहो को विकसित करने के लिये करोडो रूपये बहाये जा रहे है फिर भी यहाँ पर्यटको की संख्या में गिरावट आ रही है। कारण साफ है कि खजुराहो के आलावा अन्य क्षेत्रीय पर्यटक स्थलों का विकास नहीं किया गया ताकि खजुराहो आने वाले पर्यटक यहाँ कुछ दिन स्टे कर सके। जबकि छतरपुर जिले में ही इतिहास के साथ प्राकृतिक स्थलों की कमी नहीं है। मध्यप्रदेश की हिंदूवादी सरकार में सबसे अधिक दुर्दशा का शिकार ऐतिहासिक मंदिर है। बुंदेलखंड के संस्थापक राजा छत्रसाल की कर्मभूमि महेवा क्षेत्र अपने इतिहास को लेकर धनी है। यहाँ सैकड़ो मंदिर है। जिसमे बजरंगबली के 51 ऐतिहासिक मंदिर है। धामी समाज का तीर्थ स्थल है, लेकिन गुमनाम है। इसी तरह अचट्ट में विष्णु भगवान की 12 वी शताब्दी की प्रतिमा अद्भुत है। कई स्थान है जिनमे से एक जिला मुख्यालय छतरपुर से महज दस किमी ग्राम भगवन्तपुरा में शिव देवालय है। 8-9 वी शताब्दी में निर्मित पांच शिखर वाले शिव के मंदिर यहाँ जर्जर हालात में है जो अनैतिक कार्यों का अड्डा बन गये है। इतिहासकार बताते है पंच देवता को समर्पित यह मंदिर है। जिनमे भगवान शिव, गणेशजी, दुर्गाजी, ब्रह्मा और विष्णुजी की प्रतिमा रही होंगी। जो चोरी हो गई। तालाब के किनारे बने यह मंदिर चंदेली स्थापत्यकला की अनमोल विरासत है। मुख्यमंत्री डा.मोहन यादव के राज में सबसे अधिक दुर्दशा हिन्दू देवालयों की है। इन ऐतिहासिक विरासत को संरक्षित करने वाला कोई नहीं है। मंदिरो के नाम पर राजनीति का खेल तो खेला जाता है पर जमीनी हकीकत कुछ अलग है जो सरकारों के चाल चेहरे चरित्र को उजागर करती है।