छतरपुर जिले को इन दिनों एक गंभीर बीमारी ने जकड़ रखा है दरअसल यह बीमारी होती राजनेताओं में है पर यहां अधिकारियों को लग गई है, वह बीमारी है छपास रोग की। जिस बीमारी से राजनेताओं को ग्रसित होना चाहिये वे यहां बौने है और उन पर अधिकारी हावी
छतरपुर।छतरपुर जिले को इन दिनों एक गंभीर बीमारी ने जकड़ रखा है दरअसल यह बीमारी होती राजनेताओं में है पर यहां अधिकारियों को लग गई है, वह बीमारी है छपास रोग की। जिस बीमारी से राजनेताओं को ग्रसित होना चाहिये वे यहां बौने है और उन पर अधिकारी हावी हैं पर हम बात जिस रोग की कर रहे हैं वह कोई बुरी बात नहीं है। अच्छा काम है कुछ छपना चाहिए, जनता को पता लगना चाहिए कि कुछ हो रहा है, लेकिन जिले में अच्छा हो क्या रहा है? शहर, गांव, गली से जो खबरें छन कर बाहर आ रही हैं वह उन छपास रोगी अधिकारियों को तमाचा से कम नहीं है...
जिला मुख्यालय के दफतरों का आलम यह है कि बिना चढ़ोत्तरी के कोई काम हो जाए यह संभव नहीं है। तहसील मेें कर्मचारियों की मनमानी चरम पर है। नामांतरण कराना हो या जमीन की पैमाइश कराना हो, बगैर जेब ढीली किए तहसीलों में कोई काम नहीं होता। यहां हर काम के बाकायदा रेट तय हैं। बगैर लेन-देन काम कराने की मंशा रखने वाले चक्कर लगाते रह जाते हैं।
तहसीलों में घूसखोरी सिस्टम का हिस्सा बन चुकी है। जिला अस्पताल में अव्यवस्था कहें या फिर दुर्दशा किसी से छिपी नहीं है, अस्पताल में प्रवेश करने पर जजिया कर की वसूली, वर्षों से रिफर सेंटर बना जिला अस्पताल आज भी रिफर सेंटर बना हुआ है। इमरजेंसी में पहुंचे लोगों को प्राथमिक उपचार भी समय पर मिल जाए तो मान लीजिए बहुत बड़ा भाग्यशाली हैं। जबकि कलेक्टर संदीप जीआर ने सबसे अधिक रुचि जिला अस्पताल के सुधार की दिशा में ली, सबसे अधिक विजिट की और समय वहाँ दिया लेकिन आज तक वहाँ के बदतर हालात जस के तस हैं।
सफाई की व्यवस्था को भी वह चाहते हुए भी दूर नहीं कर पाये, रेत के अवैध उत्खनन को रोक पाने में वह अक्षम साबित हुये और आबाध गति से रेत माफिया का काला धंधा जारी है, मेडिकल कालेज के निर्माण की दिशा में वह व्यवधानों को हटाने की दिशा में दिल से सक्रिय नहीं हो पाये, अधीनस्थ अमला कलेक्टर के निर्देशों को गंभीरता से नहीं लेता और भर्राशाही का आलम व्याप्त है। और भी तमाम ज्वलंत मुद्दे हैं, जो प्रशासनिक असफलता की कहानी कहते हैं। यह एक छोटी सी बानगी भर है। हालांकि कलेक्टर संदीप जीआर के रात दिन मेहनत करने के बाद भी आगे पाट पीछे सपाट वाली कहावत लागू होती नजर आ रही है।
ऐसा इसलिए क्योंकि साहब के नवाचार जरूर सुर्खियां बंटोरने वाले होते है लेकिन बाद में खस्ताहाल नजर आते हंै। मदद हो पाए या न हो पाए, समस्याओं का हल हो या नहीं हो लेकिन सुर्खिया बंटोरने हवाहवाई आदेश और नोटिस जारी कर छपास रोगी अधिकारियों को छपने का आत्मसुख जरूर मिलता है। हालांकि छतरपुर शहर में महर्षि स्कूल से लगी पठापुर मौजा की 1 करोड़ कीमत की 12 एकड़ जमीन से अतिक्रमण हटाकर सरकारी जमीन पर 20 हजार पौधों का आर्गेनिक फ्रूट फारेस्ट सिटी पार्क एवं जिला अस्पताल में पार्क का निर्माण जरूर कलेक्टर की सराहनीय पहल है।
उर्पयुक्त समस्याओं पर सोचते इसमें बदलाव होता तो लगता कि जिले में कुछ बदला है छपता तो बात अच्छी लगती पर इसे देखने के लिए चश्मा उतराने की जरूरत है। अभी जिस छपास रोग से पीडि़त है उससे जिले को फायदा तो नही है पर पुरूष्कार की गारंटी जरूर है ले लीजिए यह जिले का भाग्य है कि हम वहीं के वहीं रहंगे आपकी तरक्की हो जाये। कभी-कभी जरूर कुछ कलमकार आईना दिखलाते हुए सख्ती बरतते हुए खबर लगाकर इनकी छपास की बीमारी का थोड़ा बहुत उपचार कर देते हैं, लेकिन छपास असाध्य रोग है इसलिए पूरा निदान नहीं किया जा सकता है। इसलिए साहब ग्राउन्ड में झांके, जनता से फीडबैक लें, हकीकत से रूबरू हों और छपास से बचें तो जिले का समुचित विकास होगा।