मप्र के मुख्यमंत्री शिवराजजी मंच पर ऐलानिया अपनी सरकार की ईमानदारी दर्शाते हुए कहते है कि माफियाओ को गड्डे में गाड़ दिया जायेगा। छतरपुर जिले में तो ऐतिहासिक तालाबों की जमीन, भराव क्षेत्र और ग्रीन जोन एरिया बेच दिया गया। इन तालाबों पर कॉलोनीय विकसित हो गई और शिवराज का प्रशासन सोता रहा। छतरपुर जिले में भू माफिया चाहते है कि 1958-59 की नक़ल आधार पर नामांतरण हो लेकिन बर्ष 2016 में विधानसभा के प्रश्न पर छतरपुर जिला प्रशासन ने जवाब भेजा था कि 1943-44 बगौता मोज़े का अधिकार अभिलेख मान्य है ।
स्वतंत्रता के पहले और उसके बाद का जमीन घोटाले का भोग है कि सरकारी जमीन पर अनाधिकृत कब्जे बिना किसी आदेश के भूस्वामी हो गये। ऐतिहासिक तालाबों तक को माफिया चट कर गये। छतरपुर जिले में भू माफियो ने इस कदर पूरे तंत्र को कब्जे में कर लिया है कि राजस्व रिकॉर्ड में तो सरकारी जमीने दर्ज है पर मोके पर कब्ज़ाई जा चुकी है । यह पूरा खेल 1958-59 की नक़ल के आधार पर किया जा रहा है । इस अवैधनिक कुकृत्य में पूर्व के राजस्व अधिकारी शामिल रहे।
वैधानिक तौर पर छतरपुर शहर का 1941-42 और बगौता के लिये 1943-44 अधिकार वर्ष माना गया है । खुद जिला प्रशासन ने विधानसभा प्रश्न में उत्तर प्रस्तुत किया है। वर्ष 2016 में तब कि बड़ामलहरा से विधायक रेखा यादव के विधानसभा तारांकित प्रश्न के जवाब में छतरपुर के अधीक्षक भू अभिलेख ने लेख किया था कि छतरपुर तहसील के ग्राम बगौता का अधिकार अभिलेख वर्ष 1943-44 में बनाया गया था। इसी प्रकार जानकारी अनुसार छतरपुर शहर का अधिकार अभिलेख वर्ष 1941-42 में बनाया गया है। तभी सवाल उठता है कि जब कानूनी तौर पर अधिकार वर्ष यह है तो कैसे 1958-59 के आधार पर नामांतरण किये गये । इसमें ही भूमाफिया और प्रशासनिक गठजोड़ का रहस्य छुपा हुआ है ।
जिन्होंने सरकारी जमीनों को बिना किसी आदेश के स्वयं के नाम दर्ज करा दिया और इन खेती की जमीनों पर बिना डायवर्सन के प्लाट काट बेच दिये । सरकारी भर्रे या प्रशासनिक चोला ओढ कर माफियाओ के साथ कदमताल चलने का परिणाम है कि जिन सरकारी जमीनों को अवैधानिक रूप से निजी भूमि दर्ज करा कर प्लाटिंग की गई उसमे नजूल, पर्यावरण और नगर निवेश कार्यालयों तक की अनुमति नहीं ली गई । ज्ञात हो कि फरवरी 2012 में तब कि क्षेत्रीय भाजपा विधायक ललिता यादव ने सरकार को राजस्व की आय के साथ धोखा देने एंव प्लाट खरीदने वालो को न्याय दिलाने की मंशा जताते हुए विधानसभा में प्रश्न उठाया।
विधायक ललिता यादव के सवाल के जवाब में राजस्व मंत्री करण सिंह वर्मा ने सदन में बताया था कि छतरपुर विधानसभा क्षेत्र में वर्ष 2009 से अभी तक कुल 129 कालोनियो का निर्माण प्रकाश में आया है। इस अवधि तक महज 8 कालोनाईजरो ने ही औपचारिकताए पूरी की। शेष 121 के विरूद्ध विधिसम्मत कार्यवाही की जा रही है। इसे सरकार की विफलता ही माना जायेगा की वर्ष 2003 में सर्वाधिक मामले दर्ज किये गये और इसके बाद वर्ष 2010 तक अवैध कालोनाईजरो के खिलाफ कोई भी कार्यवाही नही हुई। ताज्जुब है कि वर्ष 2000 से 2011 तक इन अवैध कालोनाईजरो से प्रीमियम के रूप में 65 लाख 32 हजार 408 रूपये तथा भूभाटक के रूप में 22 लाख 59 हजार 141 रूपए अर्थात कुल लगभग एक करोड रूपये वसूल किये जाने थे। साफ संकेत है कि भूमाफियाओ को प्रशासन और सरकार का संरक्षण मिलता गया तभी अवैध कालोनियां बनाकर उपभोक्ताओ के साथ खिलवाड का खेल बैखौफ-बेधडक चलता रहा।
सभी खामोश रहे। विधायक की पहल गंभीर लग रही थी पर समय के साथ समझ में आने लगा कि उनकी इस स्वस्थ मानसिकता के पीछे कुछ ओर ही छुपा था। 28 अगस्त 2012 को तत्कालीन कलेक्टर की पहल पर युवा तेजतर्राट अनुविभागीय अधिकारी सुरभी तिवारी की राजस्व न्यायालय ने 48 अवैध कालोनाईजरो के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने के आदेश जारी किये थे । इसके पूर्व भी वे 30 कालोनाईजरो के विरूद्ध इस तरह के आदेश जारी कर चुकी थी। आदेश की प्रति थाने भेज दी गई। तो भूमाफियाओ और कालोनियो का अवैध धंघा कर माल बनाने वालो में हडकंप मच गया। प्रशासन पर दबाब बनाने के लिये कानून के जाल में फंसने वालो ने छत्रसाल रियल स्टेट एसोसियेशन का गठन कर लिया। कलेक्टर को ज्ञापन सौंपा गया। चर्चाओ के मुताबिक तब आपस में चंदा कर मोटी रकम भी एकत्रित की गई। ताकि मामले को सुलटाने के लिये हर तरीके का इस्तमाल हो सके। सत्ताधारी भाजपा नेताओ से मुलाकात का दौर भी शुरू हो गया। कालोनाईजरो को ऐसे सत्ताधारी की तलाश थी जो इस मामले को दफन करा सके चाहे संबधित अधिकारियो का तबादला ही क्यो न कराना पढे। बताते है तब रात के अंधेरे में एक ताकतवर नेता से कालोनाईजरो ने संपर्क किया जिसके सीधे संबध इस मामले से जुडे मंत्रालय के मंत्री से थे ।
सार्वजनिक दवाब बनाने के लिये कालेानाईजरो के संगठन ने स्टाम्प बेंडर और रजिस्टी लेखको से काम बंद हडताल करा दी। यह सब सोची समझी रणनीति का हिस्सा था। मौके पर विधायक ललिता यादव पंहुची। जिन्होने कानून की मर्यादा रखने वाली एसडीएम सुरभि तिवारी और तहसीलदार से चर्चाए की। विधायक ने कालोनाईजरो को आश्वस्त कर दिया कि उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज नही होगी। उन विधायक ने अधिकारियो को बीच का रास्ता निकालने की सलाह दी जो अवैध कालोनियो के विकसित होने से चंद महीनो पहले ही इस कदर व्यथित थी कि उन्होने विधानसभा में प्रश्न कर दिया था। जब कार्यवाही का मौका आया तो वे स्वयं अब इन कालाोनाईजरो पर मोहित हो गई। चुकी 78 कालोनाइजर के खिलाफ अनुविभागीय दण्डधिकारी कि हैसियत से लिखित रिपोर्ट पुलिस को की गई थी जिस पर कानूनी तौर पर कार्यवाही भी जरुरी थी ।
अफ़सोस कि माफियाओ के सामने पुलिस की कार्यवाही भी अपंग साबित हुई । आज भी सत्ता शिव की है जो भरे मंच से माफियाओ को गड्डे में गाड़ने का दम भरते है। मुख्यमंत्री जी कैसे माफियाओ के खिलाफ जंग जीत पायेंगे जब प्रदेश में क़ानून नहीं बल्कि माफिया राज के प्रशयदाता खुद उनके दल से जुड़े हो। हाल ही में कुछ अवैध कालोनीयों पर कार्यवाही की गई पर पुरानी अवैध कालोनीयों पर क्या कार्यवाही हुई। यह यक्ष प्रश्न सभी के सामने है। क्या मुख्यमंत्री का भू माफियाओ को गड्डे में गाड़ने का उद्घोष अधिकारियो के लिये खुद की भरपाई करने का फंडा हो चुका है?