रविवार को छतरपुर की मीडिया के अभिशाप दिन रहा। एक महिला पत्रकार छतरपुर कोतवाली में एक पुरुष पत्रकार के साथ हाथापाई कर रही है। वीडियो वायरल हुआ जो असली कलमकारों के लिये अभिशाप से अधिक कुछ नहीं। कथित पत्रकार पहले जनता से पिटते थे जो अब कोतवाली में अपनी मर्यादा खो रहे है। यह सामान्य घटना नहीं बल्कि पूरे पत्रकारिता जमात को लज्जित करती है। इसमें शासन के बुद्धिमान अधिकारियो की ना समझ है जो सोशल मीडिया मात्र में पोस्ट की गई खबरों पर किसी को भी पत्रकार मान अपना दलाल बना लेते है। कोतवाली छतरपुर में महिला और पुरुष पत्रकारों के बीच मारपीट का मामला भी सामान्य नहीं है। जिसे लेकर बू आ रही है। हाल ही में छतरपुर शहर के नारायणपूरा मार्ग पर एक राइस मिल और एक प्लास्टिक फैक्ट्री पर छपामार कार्यवाही हुई। जनचर्चा का विषय है कि कथित पत्रकारों की दलाल टीम इस मामले को अधिकारियो से निपटा लेने को लेकर कुछ खुराक प्राप्त कर लेती है। अब इन चर्चाओ में कितनी सत्यता है यह एक गंभीर जाँच का विषय है पर अगर ऐसा है तो व्हाट्सप्प पर पत्रकारिता करने वाले पत्रकारों से कैसे मुक्ति मिलेगी, यही प्रश्न उन कलमकारों से जुडा है जिन्होंने अपना जीवन पत्रकारिता को समर्पित कर दिया। छतरपुर जिले में असंख्य पत्रकार है। किसी भी समाचार पत्र का अधिकार पत्र लेकर वह जनसम्पर्क कार्यालय में पंजीकृत हो जाते है। ऐसे पत्रकारों के समाचार पत्र की प्रतियाँ तक छतरपुर नहीं आती और ना ही जनसम्पर्क विभाग तक पहुँचती है। बस सोशल मीडिया पर पीडीएफ फाइल पोस्ट कर दलाली का काम बहुत कुछ पत्रकार कर रहे है। एक फंडा यू ट्यूब चैनल का है जो घर बैठे पत्रकार बना देता है। ऐसे फर्जी पत्रकारों ने उन कलमकारों की गरिमा को ठेस पहुंचाई और पत्रकारिता को गंधे धंधे में झोक दिया है जो व्यथित करने जैसा है। अब समय आ गया है कि प्रशासन को भी ऐसे कथित फर्जी पत्रकारों पर कार्यवाही करनी होंगी। आम जनता भी ऐसे उगाई पत्रकारों को पीट कर उनका नजराना दे। तब यह चौथा स्तम्भ और उसके रखवाले बच पाएंगे।