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कम्प्यूटर डिप्लोमा परीक्षा में बड़ा फर्जीवाड़ा उजागर एसडीएम ने पकड़े 7 नकली छात्र,पर एफआईआर अब तक नही, कार्रवाई पर उठे सवाल


दूसरे के नाम से दे रहे थे परीक्षा, कलेक्टर के निर्देश पर हुई तत्काल छापामार कार्रवाई,गंभीर मामला होने के बावजूद एसडीएम द्वारा थाने को पत्र न भेजने से एफआईआर नहीं हो सकी दर्ज।



छतरपुर। पन्ना रोड स्थित एक प्राइवेट आईटीआई कॉलेज में चल रही रामराज कम्प्यूटर डिप्लोमा सीसीसी (ट्रैपल सी)  परीक्षा में बड़ा फर्जीवाड़ा सामने आया है। किसी जागरूक नागरिक की सूचना पर कलेक्टर पार्थ जायसवाल ने गंभीरता दिखाते हुए तत्काल कार्रवाई के निर्देश एसडीएम अखिल राठौर को दिए। एसडीएम टीम ने मौके पर पहुंचकर जब परीक्षा केंद्र की जांच की तो 7 परीक्षार्थी ऐसे पकड़े गए जो दूसरे छात्रों की जगह परीक्षा दे रहे थे। परीक्षा का ऑब्जर्वर भी मौके से नदारद मिला।सूत्रों के अनुसार यह परीक्षाएं लंबे समय से उत्तर प्रदेश के निहाल खान एवं उसके साथियों द्वारा संचालित कराई जा रही थीं, जहां ज्यादातर यूपी के ही परीक्षार्थी शामिल होते हैं। बताया जाता है कि यह लोग छात्रों से मोटी रकम लेकर फर्जी उम्मीदवार बैठाते थे।

पूरे दिन चली कार्रवाई, फिर भी एफआईआर नहीं,प्रशासन की मंशा पर सवाल-

सबसे बड़ा सवाल यह है कि इतनी बड़ी कार्रवाई के बावजूद नकली परीक्षार्थियों, परीक्षा केंद्र संचालक और अनुपस्थित निरीक्षक के खिलाफ अब तक कोई एफआईआर दर्ज नहीं हुई। सूत्रों के अनुसार एसडीएम अखिल राठौर घंटों सिविल लाइन थाना में बैठे रहे, पर उन्होंने एफआईआर के लिए कोई प्रतिवेदन थाने में जमा ही नहीं किया। थाना प्रभारी सतीश सिंह का स्पष्ट कहना है जब तक प्रशासन की ओर से एफआईआर हेतु लिखित पत्र नहीं आता, हम किसी भी तरह की FIR दर्ज करने में असमर्थ हैं।
अब सवाल यह उठ रहा है कि जब 7 नकली विद्यार्थी पकड़े गए और पूरा फर्जीवाड़ा रंगे हाथों सामने आया, तो प्रशासन ने एफआईआर में देरी क्यों की जा रहीं है क्या परीक्षा माफिया पर कार्रवाई कमजोर पड़ रही है. क्या किसी दबाव या समझौते की वजह से रिपोर्ट रोक दी गई।

कार्रवाई न होना खुद में सबसे बड़ा संकेत,कहीं भीतर ही भीतर तो नहीं हो रहा खेल?

एसडीएम द्वारा 7 नकली विद्यार्थियों को पकड़ने के बाद भी एफआईआर न होना अपने आप में एक गंभीर संदेश दे रहा है। जब पूरा फर्जीवाड़ा रंगे हाथों पकड़ा गया, आरोपी सामने थे, सबूत स्पष्ट थे  फिर कार्रवाई का रुक जाना क्या बताता है। क्या मामला कहीं भीतर ही भीतर मैनेज तो नहीं हो रहा?क्या किसी प्रभावशाली व्यक्ति के निर्देश पर फाइल दबा दी गई?या फिर परीक्षा माफिया इतना मजबूत है कि कार्रवाई फाइल में ही दबी रह जाए?
कलेक्टर की ईमानदार छवि को अधिकारी कर रहें दागदार
कलेक्टर पार्थ जायसवाल की छवि जिले में एक ईमानदार और त्वरित कार्रवाई करने वाले अधिकारी की रही है। लेकिन इस मामले में कार्रवाई न होना या एफआईआर में देरी होना उनकी प्रशासनिक सख्ती पर भी प्रश्न चिन्ह खड़ा कर रहा है।
अगर कलेक्टर के निर्देश के बाद भी कार्रवाई नहीं हो रही, तो मामला जरूर गंभीर है। छतरपुर जैसे जिले में, जहाँ परीक्षा माफिया एक संगठित नेटवर्क की तरह सक्रिय है, इस तरह की ढिलाई ईमानदार छवि को नुकसान पहुँचा सकती है।

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