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धर्म की रक्षा के लिए भगवान राम ने किया रावण का अंत

 


क्रेन की मदद से आकाश में हुआ राम-रावण के बीच भीषण युद्ध,मेला ग्राउंड में हुआ रावण दहन का भव्य कार्यक्रम, लेट-लतीफी से लोग हुए परेशान

छतरपुर। जिला मुख्यालय पर दशहरे के दिन होने वाला रावण दहन का कार्यक्रम बीती शाम शहर के मेला मैदान में संपन्न हुआ। क्रेन की मदद से भगवान राम और रावण के बीच आकाश में भीषण युद्ध की लीला हुई और इसके बाद धर्म की रक्षा के लिए भगवान राम ने आततायी रावण की नाभि में मौजूद अमृत को सुखाकर उसका अंत कर दिया। हालांकि इस दौरान रावण दहन देखने के लिए मेला मैदान में एकत्रित हुए लोग कार्यक्रम में हुई देरी से बेहद परेशान नजर आए और इसके बाद लोगों ने सोशल मीडिया के माध्यम से अपनी तकलीफ जाहिर की।
प्राप्त जानकारी के अनुसार, इस वर्ष रावण दहन का कार्यक्रम श्री अन्नपूर्णा रामलीला समिति के संयोजन में संपन्न हुआ। समिति ने प्रशासन द्वारा रावण दहन कार्यक्रम के लिए निर्धारित किए गए स्थान मेला ग्राउंड में 51 फीट ऊँचे रावण के पुतले का निर्माण कराया था। इसके साथ ही राम-रावण युद्ध की लीला को रोचक बनाने के लिए समिति ने क्रेन मशीनों की व्यवस्था की थी। सर्वप्रथम गल्लामंडी के रामचरित मानस मैदान से शोभायात्रा के स्वरूप में भगवान राम अपनी सेना के साथ मेला ग्राउंड पहुँचे। मेला ग्राउंड के मंच पर अतिथियों ने भगवान गणेश, श्रीराम, माँ अन्नपूर्णा और भारत माता की आरती की। तत्पश्चात मुख्य अतिथि राज्यमंत्री दिलीप अहिरवार, छतरपुर विधायक ललिता यादव, विशिष्ट अतिथि धर्माचार्य राघवेंद्र मिश्रा, नगर पालिका अध्यक्ष ज्योति-सुरेंद्र चौरसिया, वरिष्ठ चिकित्सक डॉ. एमपीएन खरे, पूर्व नगर पालिका अध्यक्ष अर्चना सिंह, भाजपा नेता मोनू यादव ने मंच से अपने विचार व्यक्त किए। अतिथियों के उद्बोधन के उपरांत राम-रावण युद्ध शुरू हुआ, जो विशेष आकर्षण रहा। दरअसल, इस बार आयोजन समिति ने राम-रावण युद्ध के लिए क्रेन मशीनों की व्यवस्था की थी, जिनके सहारे दोनों रथ आकाश में उड़े। भीषण युद्ध के बीच विभीषण ने भगवान राम को रावण की नाभि में मौजूद अमृत का रहस्य बताया, जिस पर अपने बाण से प्रहार कर भगवान राम ने आततायी रावण का अंत किया। रावण का अंत होते ही पूरा परिसर जय श्री राम के नारों से गूँज उठा।
इस वर्ष भी गोधूलि बेला में नहीं हो सका रावण दहन-
पौराणिक ग्रंथों के अनुसार, भगवान राम ने रावण का अंत गोधूलि बेला में किया था, जिसके अनुसार संपूर्ण भारत में रावण दहन का समय गोधूलि बेला को माना जाता है, लेकिन छतरपुर में हर वर्ष की तरह इस वर्ष भी ऐसा नहीं हुआ। मंचीय कार्यक्रम में देरी के चलते रावण का दहन रात 12 बजे के बाद हुआ, तब तक ज्यादातर लोग अपने-अपने घर जा चुके थे। बाद में लोगों ने आयोजन में देरी पर कटाक्ष करते हुए सोशल मीडिया पर पोस्ट डालकर अपनी नाराजगी जाहिर की।
कम रखी गई विस्फोटक की मात्रा, नहीं जला रावण-
रावण दहन के लिए निर्धारित स्थान मेला ग्राउंड के आसपास कलेक्टर कार्यालय, जिला न्यायालय, जनपद पंचायत और नगर पालिका परिषद के कार्यालय होने के चलते सुरक्षा के मद्देनजर रावण के पुतले में विस्फोटक और ईंधन की मात्रा कम रखी गई थी, जिस कारण से पुतला जलाने में भारी परेशानी हुई। जब पुतले में आग लगाई गई तो पुतला पूरी तरह नहीं जल सका, सिर्फ उसके हाथ और पैर जले। जब पुतला पूरी तरह नहीं जल पाया, तो उसे जबरन नीचे गिराया गया। इस बीच कई लोग पुतले के अवशेष लेकर भागते नजर आए। कुछ लोग पुतले की आँखें लेकर भाग गए तो कुछ ने पुतले की मूँछें नोच डालीं।
चौकस रही पुलिस, दुरुस्त रहे सुरक्षा के इंतजाम-
कार्यक्रम भले ही देरी से संपन्न हुआ हो, लेकिन पूरे कार्यक्रम के दौरान पुलिस की व्यवस्था सराहनीय रही। इसके अलावा विषम परिस्थितियों को ध्यान में रखकर सुरक्षा के लिए भी पुख्ता इंतजाम रहे। शाम 7 बजे से लेकर कार्यक्रम संपन्न होने तक पूरे मैदान में पुलिस बल की निगरानी रही, जिससे किसी तरह की घटना कार्यक्रम के दौरान नहीं हुई। बैरिकेडिंग, फायर ब्रिगेड मशीनें पूरे समय उपलब्ध रहीं, साथ ही पार्किंग के लिए भी बेहतर इंतजाम रहे।

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