मध्यान्ह भोजन के नाम पर खानापूर्ति, अधिकारी नहीं करते कार्रवाई
छतरपुर। बच्चों को सरकारी स्कूलों की ओर आकर्षित कराने के उद्देश्य से शासन द्वारा 15 अगस्त 1995 को मध्यान्ह भोजन योजना लागू की गई थी। लागू होने के बाद यह योजना कुछ दिनों तक सुचारू रूप से चली लेकिन जैसे ही मध्यान्ह भोजन योजना स्व. सहायता समूहों के हाथ पर पहुंची तो बच्चों के हक पर डांका डालने का काम शुरू हो गया। तमाम बार शिकायतेें भी होती है। लेकिन शिक्षा विभाग के अधिकारी खासकर बीआरसी, बीएसी और जनशिक्षा जिनकी मुख्य जबावदारी मध्यान्ह भोजन की है। वह भी कोई कार्रवाई नहीं करते है। जांच के नाम स्व. सहायता समूह से लेदेकर मामले को निपटा देते है। कहीं भी मीनू का पालन नहीं किया जाता है। शासन ने जो मीनू निर्धारित किया है उसे भले ही विद्यालय में चिपका दिया लेकिन मीनू के अनुसार बच्चों को खाना नहीं मिलता। खाने में प्रतिदिन बदल बदल कर देने का प्रावधान है। लेकिन प्रतिदिन पतली दाल और आलू टमाटर की सब्जी जिसमें आलू ढूडने को नहीं मिलेंगे। रसोईयों का कहना है कि जो हमें समूह संचालक सामान उपलब्ध करा देते है उसी के आधार पर खाना बनाते है। बच्चों की संख्या के नाम पर भी फर्जीवाड़ा किया जाता है। कम संख्या में बच्चें आने पर पूरी हाजरी दिखाकर शासन को चूना लगाया जा रहा है। अभी जुलाई का महिना आधा पूरा हुआ है। एमडीएम के स्कूलों हाल बेहाल हो गया है। शिक्षा विभाग के अधिकारियों ने अभी तक किसी भी स्कूल में जाकर मध्यान्ह भोजन जाकर चैक नहीं किया। कई बार तो यह भी शिकायतें आती है कि चावल के साथ कीडे भी निकल रहे है। लेकिन धीरे-धीरे मामले को शांत कर दिया जाता है।
जनप्रतिनिधियों के भी चल रहे समूह
देखा यह जा रहा है कि कई जन प्रतिनिधियों ने अपने चहेतों के घरों की महिलाओं के नाम पर स्व. सहायता समूह बना लिए है और उन्हीं जन प्रतिनिधियों का इन समूहों पर कब्जा रहता है। जो समूह के सदस्यों की लिस्ट होती है वह नाममात्र की होती है। लेकिन सच्चाई यह है कि कोई और समूह चलाता है नाम सिर्फ गरीब महिलाओं का होता है। क्योंकि शासन की यह योजना है कि गरीब महिलाओं के समूह बनाकर उन्हें रोजगार उपलब्ध कराया जाये। अगर प्रशासनिक अधिकारी जिले में स्व. सहायता समूहों की जांच का एक अभियान चलाए तो सच्चाई सामने आ जायेगी कि स्कूलों में मध्यान्ह भोजन बनाने वाले स्व. सहायता समूह वास्तव में असली है या फिर जन प्रतिनिधियों के है।