छतरपुर। शहर के गांधी आश्रम में शनिवार को ऐतिहासिक नाटक आद्य नायिका का मंचन किया गया जिसमें बड़ी संख्या में कलाकारों ने अपनी भूमिका से मौर्य काल को जीवंत कर दिया। मंच की साज-सज्जा और कलाकारों की वेशभूषा मौर्यकाल का परिचय कराती हुई नजर आयी।
नाटक में इतिहास, मिथक और वर्तमान समय को एक साथ प्रस्तुत करके बेहतर संदेश दिया गया। यह नाटक प्रख्यात रंगकर्मी और साहित्यकार अरूणाभ सौरभ की एक लंबी कविता पर आधारित था जिसमें वैभवशाली मगध और अखण्ड भारत की राजधानी पाटली पुत्र के उत्थान और पतन की गाथा का वर्णन किया गया। आद्य नायिका यक्षिणी के माध्यम से इस नाटक ने देवलोक, गंधर्व लोक से लेकर मृत्यु लोक तक फैली पितृसत्तात्मक संरचना को उजागर किया। नाटक का निर्देशन मप्र नाट्य विद्यालय के पूर्व छात्र लखन अहिरवार ने किया।
25 कलाकारों के अभिनय से सजा था नाटक-
आद्य नायिका यक्षिणी नाटक में मंच और मंच के परे लगभग 25 कलाकारों ने अपने अभिनय, संगीत और मंच सज्जा से इसे जीवंत बना दिया। सम्राट अशोक द्वारा कलिंग विजय के बाद चारों तरफ फैली लाशों को देखकर और जनता के विद्रोह को समझते हुए बौद्ध धर्म अपनाने का निर्णय किया। इसके पश्चात पुष्यमित्र शुंग के राज्य में राजा ने तानाशाही भरा निर्णय लेते हुए सारे बौद्ध मठों का पुनर्निमाण कराया साथ ही यह आदेश भी दिया कि अखण्ड भारत में उसके निर्णय के अनुसार ही कार्य किए जाएंगे। नाटक में मुख्य भूमिका में लखन लाल अहिरवार, पूजा अहिरवार, रवि, राजेश कुशवाहा, भूपेन्द्र वर्मा, निशांत बाल्मीक, डोली अहिरवार, प्रिया सेन, अनिल कुशवाहा आदि लोग रहे तो वहीं संगीत एवं अन्य व्यवस्थाओं में महेन्द्र तिवारी, सचिन सिंह परिहार, यथार्थ, ब्रजभान अहिरवार, वशिष्ठ, यश सोनी, कृष्णकांत मिश्रा, अभिदीप सुहाने सहित अन्य कलाकार शामिल रहे। इस मौके पर विशेष तौर पर उपस्थित गांधी स्मारक निधि के अध्यक्ष संतोष कुमार द्विवेदी ने कहा कि छोटे से शहर में ऐतिहासिक नाटक में इतने दर्शक उपस्थित होना इस बात को दर्शाता है कि छतरपुर में नाटक देखने वालों की संख्या में इजाफा हो रहा है तो वहीं नाटक के लेखक अरूणाभ सौरभ ने कलाकारों की तारीफ करते हुए कहा कि एक माह के सीमित समय और भीषण गर्मी को देखते हुए जिस तरह से कलाकारों ने मेहनत की है वह मंच पर साकार हुई है। रंगकर्मी शिवेन्द्र शुक्ला ने अपने उद्बोधन में कहा कि कस्बाई रंगमंच काफी मुश्किल भरा काम होता है लेकिन छतरपुर के दर्शकों के सहयोग से यहां पर थिएटर का विकास लगातार हो रहा है। कार्यक्रम के अंत में आभार प्रकट करते हुए गांधी आश्रम की सचिव दमयंती पाणी ने कहा कि गंाधी आश्रम का यह परिसर कलाओं और कलाकारों के उत्थान के लिए हमेशा सहयोगी रहा है और आगे भी इसी तरह का सहयोग मिलता रहेगा।
नाटक में इतिहास, मिथक और वर्तमान समय को एक साथ प्रस्तुत करके बेहतर संदेश दिया गया। यह नाटक प्रख्यात रंगकर्मी और साहित्यकार अरूणाभ सौरभ की एक लंबी कविता पर आधारित था जिसमें वैभवशाली मगध और अखण्ड भारत की राजधानी पाटली पुत्र के उत्थान और पतन की गाथा का वर्णन किया गया। आद्य नायिका यक्षिणी के माध्यम से इस नाटक ने देवलोक, गंधर्व लोक से लेकर मृत्यु लोक तक फैली पितृसत्तात्मक संरचना को उजागर किया। नाटक का निर्देशन मप्र नाट्य विद्यालय के पूर्व छात्र लखन अहिरवार ने किया।
25 कलाकारों के अभिनय से सजा था नाटक-
आद्य नायिका यक्षिणी नाटक में मंच और मंच के परे लगभग 25 कलाकारों ने अपने अभिनय, संगीत और मंच सज्जा से इसे जीवंत बना दिया। सम्राट अशोक द्वारा कलिंग विजय के बाद चारों तरफ फैली लाशों को देखकर और जनता के विद्रोह को समझते हुए बौद्ध धर्म अपनाने का निर्णय किया। इसके पश्चात पुष्यमित्र शुंग के राज्य में राजा ने तानाशाही भरा निर्णय लेते हुए सारे बौद्ध मठों का पुनर्निमाण कराया साथ ही यह आदेश भी दिया कि अखण्ड भारत में उसके निर्णय के अनुसार ही कार्य किए जाएंगे। नाटक में मुख्य भूमिका में लखन लाल अहिरवार, पूजा अहिरवार, रवि, राजेश कुशवाहा, भूपेन्द्र वर्मा, निशांत बाल्मीक, डोली अहिरवार, प्रिया सेन, अनिल कुशवाहा आदि लोग रहे तो वहीं संगीत एवं अन्य व्यवस्थाओं में महेन्द्र तिवारी, सचिन सिंह परिहार, यथार्थ, ब्रजभान अहिरवार, वशिष्ठ, यश सोनी, कृष्णकांत मिश्रा, अभिदीप सुहाने सहित अन्य कलाकार शामिल रहे। इस मौके पर विशेष तौर पर उपस्थित गांधी स्मारक निधि के अध्यक्ष संतोष कुमार द्विवेदी ने कहा कि छोटे से शहर में ऐतिहासिक नाटक में इतने दर्शक उपस्थित होना इस बात को दर्शाता है कि छतरपुर में नाटक देखने वालों की संख्या में इजाफा हो रहा है तो वहीं नाटक के लेखक अरूणाभ सौरभ ने कलाकारों की तारीफ करते हुए कहा कि एक माह के सीमित समय और भीषण गर्मी को देखते हुए जिस तरह से कलाकारों ने मेहनत की है वह मंच पर साकार हुई है। रंगकर्मी शिवेन्द्र शुक्ला ने अपने उद्बोधन में कहा कि कस्बाई रंगमंच काफी मुश्किल भरा काम होता है लेकिन छतरपुर के दर्शकों के सहयोग से यहां पर थिएटर का विकास लगातार हो रहा है। कार्यक्रम के अंत में आभार प्रकट करते हुए गांधी आश्रम की सचिव दमयंती पाणी ने कहा कि गंाधी आश्रम का यह परिसर कलाओं और कलाकारों के उत्थान के लिए हमेशा सहयोगी रहा है और आगे भी इसी तरह का सहयोग मिलता रहेगा।