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वैध अनुमति के नाम पर हो रहा अवैध खनन, मानकों की खुलेआम धज्जियां उड़ा रहे ठेकेदार

(पुष्पेन्द्र दीक्षित)


केन नदी की गहराई से अवैध रुप से निकाली जा रही रेत, बडे पैमाने पर अवैध परिवहन जारी

रेत के काले कारोबार में फायदा ही फायदा, माफियाओं के आगे बेमानी है कानून कायदा


छतरपुर।  जिले में खनिज माफियाओं का एकछत्र राज चल रहा है। इनके आगे प्रशासन की एक नहीं चलती है। केन नदी का सीना चीरकर गहराई से अवैध रुप से रेत निकालकर बडे पैमाने पर अवैध परिवहन किया जा रहा है। रेत के इस काले कारोबार में फायदा ही फायदा है, माफियाओं के आगे कानून भी नतमस्तक नजर आता है।

      केन नदी के बछौन क्षेत्र के बिलहरी घाट, चंदला क्षेत्र के बंजारी, बघारी, हिनौता, हथौहा, हर्रई घाट, लसगरहा, हिनौता, सूरजपुर, सड़कर, सरवई क्षेत्र के रामपुर, नेहरा घाट, गौरिहार क्षेत्र के बड़नपुर और बरूआ घाट, गौरीहार क्षेत्र में रेत खदान रामपुर, पड़वार, मवईघाट, बरूआ, परेई, रेवनाए पड़वार, मवईघाट, परेई, रामपुरघाट, कंदेला, बारबंद, गोयरा, बारीखेड़ा, महयाबा, अजीतपुर, फत्तेपुर, नेहरा घाट से रात दिन रेत का अवैध उत्खनन चल रहा है। केल नदी के रामपुर, बलरामपुर घाटों से रेत निकाली जा रही है। रेत माफिया के हौसले इतने बढ़ गए है कि अब रात के अंधेरे में चोरी छिपे नहीं बल्कि दिन दहाड़े नदियों का सीना चीरकर रेत लूटने में लगे हैं। इधर, घाट के किनारे की रेत खत्म हो जाने से अब नदी के पानी के अंदर से रेत निकालने के लिए डीजल इंजन से चलने वाले लिफ्टर नदी में उतारे हैं। इन लिफ्टरों से पानी के अंदर की रेत खींचकर किनारे लाई जाती है। जिसे हैवी मशीनों से ट्रकों, डंफरों और ट्रैक्ट्रर में भरकर सीमावर्ती उप्र के बांदा जिले में सप्लाई किया जा रहा है। 

     सही मायने में रेत के अवैध उत्खनन और परिवहन के करोड़ों के कारोबार से मोटा मुनाफा कमाकर रेत माफिया मालामाल हो रहे हैं। वहीं शासन को प्रतिमाह लाखों रुपये का चूना लगाया जा रहा है। नीचे से ऊपर तक सबको साधकर बड़े तरीके से चमकीली रेत का काला कारोबार चलाया जा रहा है। ये जगजाहिर है जिले में हावी रेत माफियाओं को क्षेत्र के राजनेताओं का भरपूर संरक्षण मिला है। क्षेत्र के एक माननीय को इस बार जैसे ही लालबत्ती मिली वैसे ही उनके नाम पर कारोबारियों ने केन नदी से रेत का अवैध उत्खनन और तेज कर दिया। माननीय सहित कई दबंग पूर्व विधायक और नेता रेत माफियाओं के सरपरस्त बने हैं। बंदूकों की दम पर रेत का यह अवैध कारोबार इस कदर फलफूल रहा है कि इनके रसूख और पावर के आगे प्रशासन की सांसे हमेशा फूलती रहती हैं। 

माफियाओं के रसूख के आगे खनिज विभाग नतमस्तक

    ऐसा नहीं कि खनिज विभाग को रेत के इस काले कारोबार की कोई जानकारी न हो, लेकिन धनबल और बाहुबल के धनी रेत माफियाओं के रसूख और हथकंडों के आगे कोई भी नियम व कायदा काम नहीं आता है। सब कुछ देख कर भी खनिज विभाग कुछ नहीं कर पाता है। यदा कदा ही रेत का अवैध रूप से परिवहन करने वाले ट्रैक्टरों पर कार्रवाई की जाती है। रेत माफिया के लिफ्टरों, हैवी मशीनों पर कार्रवाई करने में   

खनिज विभाग के हाथ पांव कांपते हैं।हालांकि खनिज विभाग इस बात के दावे भी कर रहा है कि रेत के अवैध उत्खनन और परिवहन पर पूरी तरह से रोक लगी है। फिर भी रेत का अवैध रूप से उत्खनन और परिवहन कैसे किया जा रहा है इस सवाल का विभाग के पास कोई जवाब नहीं है।

सुविधा शुल्क की चमक से चौंधियाई पुलिस की आंखे 

    सूत्रों की मानें तो चंदला, बारीगढ, गौरिहार सहित केन और केल नदी से सटे थानों के थानेदार भी रेत माफियाओं के साथ साझेदार बने हैं। सभी थानों को बाकायदा सुविधा शुल्क पहुंचाई जाती है जिससे नदी से रेत निकालने के लिये उतरी बडी बडी मशीनों और रेत के अवैध परिवहन में लगे वाहनों से पुलिस दूर ही बनी रहे। सही मायने में सुविधा शुल्क की चमक की चकाचोंध से पुलिस आंखे बंद किये रहती है। इसी कारण जिले में रेत माफियाओं को रेत का अवैध उत्खनन व अवैध परिवहन की खुली छूट मिली है। चमकीली रेत के इस काले कारोबार पर न पुलिस वर्दी की गर्मी काम आती है न डंडा चल पाता है।

खेती की जमीनों को भी नहीं बख्शा इन रेत पिचाशों ने

    जहां एक और नदी में लिफ्टर उतार कर बीच धार से रेत निकाली जा रही है वहीं दूसरी ओर किसानो की जमीनों पर लालच देकर खेती योग्य जमीन को बंजर बनाकर रख दिया गया है चंद पैसों के लालच में इस क्षेत्र के किसानों ने अपनी मां समान उपजाऊ धरती को रेत कारोबारियों के हाथ सौंप कर अपनी जमीनों के बंटाधार करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है।

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