(धीरज चतुर्वेदी छतरपुर बुंदेलखंड)
विधानसभा चुनावों के बाद उपमुख्यमंत्री पद की खूब चर्चाये होती है। मुख्यमंत्री के बाद उपमुख्यमंत्री कौन कौन होंगे। जबकि उपमुख्यमंत्री के पद का संविधान में उल्लेख तक नहीं है। इस पद के अविष्कारक राजनैतिक दल है जिसका उपयोग और प्रयोग पार्टी के अंदर नाराज चेहरों और जातिगत समीकरण की बिसात के लिये किया जाता है। अब उपमुख्यमंत्री कितने होंगे इसकी भी संख्या सत्ताधारी दल पर निर्भर है क्यों कि बिना अधिकार का यह पद झुनझुना के सिवाय कुछ नहीं है।
राष्ट्रपति के बाद उप राष्ट्रपति के पास कुछ विशेष अधिकार होते है। जबकि हैरान होंगे कि उप मुख्यमंत्री का संविधान में कोई उल्लेख नहीं है और ना ही उसे कोई पावर है। यहाँ तक कि मुख्यमंत्री की अनुपस्थिती में भी उपमुख्यमंत्री को कोई अधिकार नहीं है। प्रश्न कोंधाना स्वभाविक है कि ज़ब उपमुख्यमंत्री का पद संविधान के अनुसार नहीं और कोई अधिकार नहीं तो आखिर राजनैतिक दल क्यों इस पद पर भी किसी को नियुक्त कर देते? जवाब सरल सा है कि यह पद ही सत्ता में आसीन होने वाले राजनैतिक दलों का अविष्कार है जिसका उपयोग पद की रेवड़ी बाँटने की मंशा के अलावा कुछ नहीं है। पद बड़ा होने से तामझाम बढ़ जाता है। इसलिए राजनैतिक दल उपमुख्यमंत्री को किसी मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंप देते है ताकि उसके पास खुद के मंत्रालय का अधिकार रहे। अगर उपमुख्यमंत्री के पास मंत्रीमण्डल की कोई जिम्मेदारी नहीं रहेगी तो वह झुनझुने के सिवाय कुछ नहीं है। मूल यह है कि मुख्यमंत्री की रेस के दावेदारों को खुश रखने और जातिगत समीकरण की गोटी फेंक मतदाताओं में अपना जनाधार बढ़ाने के नुस्खे का नाम है उपमुख्यमंत्री पद।