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राष्ट्रदोही फैला रहे हैं समस्याओं का भवंरजाल

 


भविष्य की आहट / डा. रवीन्द्र अरजरिया

देश की संवैधानिक मर्यादाओं को तार-तार करने में जुटे राजनैनिक दिग्गजों की स्वार्थपरिता लम्बे समय से सामने आती रही है परन्तु राष्ट्राध्यक्ष पर अभद्र टिप्पणी करने वालों ने निन्दा के सभी कीर्तिमान ध्वस्त कर दिये हैं। गत शुक्रवार को लोकसभा तथा राज्यसभा के संयुक्त सत्र को देश की राष्ट्राध्यक्ष महामहिम द्रोपदी मुर्मू ने संबोधित करते हुए अपने 59 मिनिट के भाषण में किसानों, छात्रों, गरीबों, आदिवासियों, इन्फ्रास्ट्रक्चर, स्वास्थ्य तथा बैकिंग जैसे मुद्दों को रेखांकित किया था। भाषण के तुरन्त बाद कांग्रेस की परिवारवादी नेता और सांसद सोनिया गांधी ने टिप्पणी करते हुए कहा कि अन्त तक राष्ट्रपति बहुत थक गईं थीं, बेचारी बहुत मुश्किल से बोल पा रहीं थीं। उनके पुत्र और सांसद राहुल गांधी ने कहा कि यह अभिभाषण बोरिंग था। बंगाल समस्या की जनक और तृणमूल कांग्रेस की सुप्रीमो ममता बनर्जी के खास सिपाहसालर और सांसद कल्याण बनर्जी ने तो देश के सर्वोच्च पद पर आसीत राष्ट्राध्यक्ष के संभाषण को हास्यास्पद बताकर खुलेआम खिल्ली उडाई जबकि निर्दलीय सांसद पप्पू यादव ने तो बेहद घटिया शब्दों का प्रयोग करके अपने विचार व्यक्त किये। संविधान में उल्लेखित अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आड लेकर संविधान की ही मर्यादाओं को चिता पर सजाने वालों ने देश की प्रथम नागरिक को ही 'बेचारी' कहकर लाचार बना दिया। उनकी सोच में जब सर्वोच्च पदाधिकारी ही बेबस है तो फिर देश के आम आवाम की तो औकात ही क्या बचती है। दयनीयता की चरम सीमा पर देश को पहुंचाने की मंशा पालने वाले लोगों की मनोभूमि को कवच देने वालों की भी कमी नहीं है। अनर्गल टिप्पणी करने वालों के पक्ष में उनके खास लोगों की फौज उतर आई। सत्य के विरोध में तोड-मरोड कर प्रस्तुति, मनमानी व्याख्या और जानबूझकर मुद्दा बनाने जैसे हवाई आरोप उडाये जाने लगे। मीर जाफर जैसी भूमिका का निर्वहन करने वाले खद्दरधारियों व्दारा देश के बाहर जाकर भारत को बेरोजगारी, लाचारी, गरीबी, बदहाली और भिखारी जैसी स्थितियों का सरताज बनाकर पेश किया जाता रहा है। गोरों के देश में पाई गई तालीम अब अपने ही देश को नस्तनाबूत करने में महती भूमिका का निर्वहन कर रही है। सदन में लात-घूंसे, गाली-गलौज और मार-पीट के अनगिनत उदाहरण तो सत्रकाल में हमेशा ही देखने को मिलते रहते हैं परन्तु राष्ट्रध्यक्ष को 'बेचारी' बनाने वाली घटना पहली बार सामने आई है। विश्व के भाल पर बुलंदी का सितारा बनकर चमकने वाले राष्ट्र को उसी के देश में मजबूर बनाने की कोशश में लगे लोग अब सरेआम विदेशी एजेन्डे पर काम करते प्रतीत हो रहे हैं। संसद के इस घटनाक्रम को भारत विरोधी अमेरिकी कारोबारी जार्ज सोरोस के बेटे एलेक्स सोरोस और बंगलादेश की अंतरिम सरकार के मुखिया मोहम्मद यूनुस की बैठक से साथ जोडा जा रहा है। एलेक्स सोरोस के पास ओपन सोसाइटी फाउंडेशन के अध्यक्ष का पद है जिसके माध्यम से वे अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप व्दारा बंगलादेश की रोकी गई सहायता की भरपाई करने का सब्जबाग लेकर वहां पहुंचे थे। देश के बाहर और देश के अन्दर एक साथ सरकार को घेरने के कथित षडयंत्र की कहानियां चौराहों से लेकर चौपालों तक चटखारे लेकर कही-सुनी जा रहीं हैं। अहसानफरामोश बंगलादेश के कट्टरपंथियों व्दारा व्यक्तिगत लाभ हेतु जानी दुश्मन के साथ गलबहियां करके पूंंजीवादी देशों के इशारे पर विश्वगुरु के सिंहासन के नजदीक पहुंच रहे हिन्दुस्तान को चारों ओर से फंसाने ेहेतु प्रयास तेज कर दिये गये हैं। इसे टूलकिट गैंग की करामात भी कहा जा रहा है। इतिहास गवाह है कि गत वर्ष अक्टूबर माह में यूनाइटेड नेशंस व्दारा आयोजित कार्यक्रम में भागीदारी दर्ज करने के दौरान मोहम्मद यूनुस ने कथित षडयंत्रकारी जार्ज सोरोस के साथ मुलाकात करके आगामी नीतियों का निर्धारण किया था जिसकी कार्य परिणति वर्तमान में देखने को मिल रही है। हंगरी में जन्मे तथा अमेरिकी नागरिकता प्राप्त जार्ज सोरोस पर हमेशा से ही लैटिन अमेरिका, मिडिल ईस्ट और पूर्वी यूरोप में चुनी गई सरकारों को गिराने, अपनी पसंद के लोगों को सिंहासन पर बैठाने तथा मनमाफिक नीतियां बनवाने के आरोप लगते रहे हैं। कहा तो यहां तक जा रहा है कि इटली के ओरबासानो लुसियाना के कट्टर कैथोलिक परिवार में जन्मी एंटोनिया माइनो, जो राजीव गांधी के साथ परिणय बंधन में बंधने के बाद सोनिया गांधी बन गई, अपने सिपाहसालारों के माध्यम से निरंतर जार्ज सोरोस के संपर्क में हैं। चीन के व्दारा सीमा पर रह-रहकर पैदा की जाने वाली समस्यायें, पाकिस्तान के व्दारा आतंकवादियों की खेपों पर खेपें भेजने का सिलसिला, बंगलादेश व्दारा दी जा रही गीदड़ भभकी, श्रीलंका व्दारा भारत के साथ हुए व्यापारिक समझौतों को निरस्त करना और नेपाल के साथ स्थापित संबंधों पर उतार-चढाव जैसे कारक यूं ही सामने नहीं आ रहे है बल्कि इसके पीछे दूरगामी षडयंत्र, लालचियों की फौज और अस्मिता के सौदागरों की भीड भी उत्तरदायी है। देश, काल और परिस्थितियों की गहराई से समीक्षा करने पर जो धुंधली तस्वीर सामने आती है, उसे सुखद कदापि नहीं कहा जा सकता। चीन और अमेरिका दौनों दुश्मन देश अब भारत के बढते प्रभाव से खासे परेशान हैं किन्तु उनकी अपनी अलग तरह की मजबूरियां है जिनके कारण वे मुख में राम, बगल में छुरी वाली कहावत को व्यवहारिक रूप ंमें चरितार्थ कर रहे हैं। देश की मजबूत कूटनीति, उसका सफल क्रियान्वयन और आत्मविश्वास की चरम सीमा पर बैठा नेतृत्व ही वह त्रिवेणी है जिसमें डुबकी लगाने को समूचा विश्व लालायित है। ऐसे में देश की छवि को खराब करने का दायित्व सम्हालने वाले अनेक राजनैतिक नेताओं के दामन में पल रहे राष्ट्र विरोधी सपोलों को विषदंद निकले से पहले ही कुचना होगा तभी राष्ट्र सम्मान, नागरिक स्वाभिमान और विकास के कीर्तिमान सुरक्षित रह सकेंगे अन्यथा गुलामी की यादों को ताजा रखने वाली स्मारकों को संविधान संशोधन के माध्यम से कवच देने वाले चन्द सफेदपोश लोग आने वाले समय में देश को ही अपनी पहचान ढूंढने के लिए मजबूर कर देंगे। राष्ट्रदोही फैला रहे हैं समस्याओं का भवंरजाल ताकि देश को पुन: दयनीय स्थिति में पहुंचाया जा सके। भंवरजाल को तोडने हेतु अब आम आवाम को एक जुट होकर अतीत की समीक्षा ही नहीं करना होगी बल्कि परिणामों को औचित्य की तराजू पर भी तौलना होगा, सकारात्मक कदमों को उठाना होगा और करना होगा निहित स्वार्थों का त्याग। तभी देश, देशवासी और देश की पहचान सुरक्षित रह सकेगी। इस बार बस इतना ही। अगले सप्ताह एक नई आहट के साथ फिर मुलाकात होगी।

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